Badlaav: A poem by Nisha Tandon


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आँख मिचोली में बीत गया गुज़रा साल
हुआ कुछ अनोखा तो बहुत कुछ मन को भा गया
कुछ क़समें-वादे नए और आधे-अधूरे सपने भी
तो कुछ नई उम्मीदें लेकर अब नववर्ष आ गया

नववर्ष की पहली सुनहरी सी किरण ने
डाल दी रोशनी अंधेरों से घिरे चिराग़ों में
बुझती शमा बल खाती हुई फिर जगमगा उठी और
मीठे सुरों की आवाज़ आने लगी सूनी दीवारों से

वक़्त ने जैसे ही करवट बदली अपनी
मौसम भी ख़ूबसूरत बदलाव लेकर आ गया
हम देखते रहे बस मंत्रमुग्ध हो कर
सुहाना पतझड़ बीता तो सर्द महीना आ गया

मन में इरादे कुछ पक्के है अब के बरस
कुछ कर गुजरने का जुनून भी हम में बेमिसाल है 
महसूस होता है बहुत कुछ है बदलने वाला
औरों से जुदा लगता ये नया साल है

दिलों के रिश्तों को जोड़ लें एक बेजोड़ डोर से 
नफ़रत की आग को प्यार के दरिया को सौंप दें
देश प्रेम का जज़्बा रहे सर आँखों पर हमारे
ऊँच नीच के ख़यालों को मन में आने से रोक दें




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