जिन्दगी गुजर रही है
मुझे नहीं पता कि
यह अच्छी गुजर रही है या
बुरी गुजर रही है
बस गुजर रही है
किसी का साथ नहीं
बस अपना ही साथ है
एक हाथ से पकड़
दूसरा हाथ
खुद को तसल्ली देने का
यही एक तरीका है
सलीका है
व्यवहार है
इस बहाने जुड़ जाते हैं
मेरे दोनों हाथ भी और
उठ जाते हैं
खुदा की इबादत में
तकलीफ में तो शायद हूं
तभी तो आजकल खुदा
बहुत याद आता है।