पड़ने दो किसी पेड़ की छाया मुझ पर


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पड़ने दो

किसी पेड़ की छाया भी मुझ पर कि

मेरा तन जलता है

न रोको

किसी राह पर चलते मेरे कदमों को कि 

मेरे पांव का छाला

एक आग के शोले सा दहकता है

मेरे घर में

मुझे न परायेपन का अहसास कराओ कि 

तुम्हारी शरारत भरी मुस्कुराहटों से अब मेरा दम घुटता है

तुम उड़ते रहो एक खुले

आकाश में पर

मुझे तो मेरे हिस्से की जमीन दे दो कि उसकी नरम मिट्टी की

हरी मखमली धूप पर अपने पांव

रखकर चलने का मेरा मन

करता है।


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