गुज़रती हूँ जब भी मैं यादों की
झरने लगते हैं कुछ बीते पल यादों की दरख़्त से ।
एक नरम मखमली कालीन बन लिपट जा
और ख़ुशबू की चादर बन मुझे समेट
बेशुमार पल ज़िंदगी के,मोतियों
अपनी परछाईं को पकड़ने की ज़िद्
तितली बन इंद्रधनुष छूने की हठ
वो साहिल पर सोने सी चमकती रेत
और ,हुआ एक ख़ूबसूरत सिलसिले का
अठखेली करतीं लहरों के संग चाँद
गुजरता दिन,ठहरी शामें ,रात की
एक दूसरों की आँखों में सदियों
तो कभी वक़्त के ठहर जाने का गु
उन पलों पर …न रस्मों का पहरा
ढलते शाम में दिन की मदहोशी की
वो पल वहीं ठहर गए और कै़द हो ग
मैं आगे बढ गई …और …आज उम्र
वो बीते पल पन्नों से निकलकर बि
मुझे जीने का हौसला देते हैं ,त
उन बीते पलों की सुखद यादें समे