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Santaap: A poem by Rajkumar Gupta


संताप स्वागत में  देखना कोई कमी न रहने पाये
जब आए दुख तो आँखों में नमी न रहने पाये
मित्रों दुख से कर लेना दिल की बातें जी भर भर कर
पश्चात सोचने से क्या लाभ कुछ अनकही न रहने पाये
 
विचलित होना नहीं यारों स्वागत संताप का करना
मृत्यु एक बार की अच्छी है बार-बार मत मरना
दूसरों को दुखों से मुक्त रखना यही सिखाया दुखों ने
चेहरा प्रफुल्लित हो आँखों से बहाना नहीं झरना
 
संताप ने कराया एहसास पराये और अपनों का
दुख ने साथ दिया सुख ने जाल फैलाया सपनों का
प्रिय दुखों से मानव जीवन सुगंधित परिष्कृत होता है
झूठा शृंगार किये फिरते रहे लोग गहनों का
 
बुलाओ न बुलाओ फिर भी जीवन मे दुख आएगा
इसके आने पर कोई बिरला मानव ही मुस्कुराएगा
घबराना मत सब देते है ऐसा उपदेश एक-दूसरे को
समय को साध स्वयं को संभाल फिर मन गुनगुनाएगा
 
रे मन संतप्त न हो देख कर संताप जीवन में
सुलह कर ले दुखों से मज़ा नहीं है अनबन में
‘राज’ राहें हमेशा पुष्पों से आच्छादित नहीं होती 

 सखा काटों का भी होता है साम्राज्य जीवन उपवन में