in

Naye Varsh mein aao prem ke ped ugaayein: A poem by Dr. Aparna Pradhan

नए वर्ष की पावन बेला में प्रेम का संदेश फैला कर
रंजिश और नफ़रत की दीवारें गिराएँ I
दिल में नया रंग, नई उमंग और ख़ुशियाँ भर कर
धर्म मज़हब जात पात का भेद मिटाएँ II
आओ कुछ प्रेम के बीज
 धरती पर छिड़क कर
सारे जग में प्रेम फैलाएँ I
बरसात की बूँदे
धरती का माथा चूमकर
प्यार भरे स्पर्श से जब सींचेंगी I
धरा का गर्भ चीर कर
बीज अंगड़ाई लेकर
नींद से तब जागेंगे I
होले होले आँखें खोल कर
सृष्टि को देखेंगे I
सूरज की गर्मी पा कर
नन्हें नन्हें पौधे
प्रेम के रस में भीगे
पल पल बढ़ते जाएँगे II
उल्लास भरी कोपलें फूटकर
समय की दहलीज़ पर
प्रीत की कहानी लिख जाएँगी  I
चारों तरफ़ कलियाँ
धीरे धीरे घूँघट उठा कर
प्रेम के फूल में निखर जाएँगी  I  
मोहब्बत की ख़ुशबू से
सारे चमन को महका कर
फ़िज़ा में प्यार का पैग़ाम फैलाएँगी II
देखते देखते प्रेम के पेड़
बाँहें फैलाएँ नज़र आएँगे I
ख़ुशियों के बौर से लद कर
मंद मंद मुस्काएँगे I
 ख़ुशनुमा माहौल बनाकर
दूषित मन को शुद्ध करते जाएँगे I
नफ़रत पर हावी हो कर
मन में भरी कटुता मिटाएँगे I
सृष्टि के कण कण में
प्यार ही प्यार भर जाएँगे II