तुम और मैं
कोई दो नहीं
एक ही हैं
मैं जीवन में चुनती ही
उसे हूं
अपनाती ही उसे हूं
पाती ही उसे हूं
अपने जीवन के दर्पण में
उतारती ही उसे हूं
अपलक निहारती ही उसे हूं जो
शत प्रतिशत
बिल्कुल मेरे जैसा हो
रिश्तों में नहीं पसंद
मुझे जरा सी भी
मिलावट
ठुकरा देती हूं
उसे मैं फिर एक जहर
समझ के
रसपान करती हूं
मैं सिर्फ अमृत का
बेशक उसकी मात्रा हो
कम
जीना है भरपूर तो
अपने शौक पूरे करो
जो कोई तुम्हें
आराम दे
सुकून दे
मान दे, सम्मान दे
प्यार दे
उसे ही सहर्ष अपनी
जिंदगी में शामिल
करो।