in

चक्रव्यूह: मनीषा अमोल द्वारा रचित कविता

चक्रव्यूह में घुस कर ही
इस व्यूह को तोड़ना है
अनमोल जीवन का ये सफर
सकुशल बाहर निकलना है

दूर निर्बलता को करने का
उत्तम सबसे है ये उपाय
है मन से पूजना ईश्वर को
इस की हो नियमित क़वायद

हृदय स्थल को कर सुदृढ़
उस चुंबकीय शक्ति को बटोर
तीव्र बजा उस शंखनाद को
पथ हो चाहे कितना ही कठोर

गर मनोयोग से किया गया
प्रयोजन कभी न हो निष्फल
सार्थक पूर्ण प्रयास हो तो
अच्छे कर्मों का शुभ कर्मफल

वक़्त के रहते पुकार वक़्त की
सुन कर समझ कर हर बार
उठा लो अपने कदम दृढ़ता से
कोहरा घना भी छँटे बारंबार