शाम होते ही
रात की याद आने लगती है
कई बार दिन भर की थकान इतनी होती है कि
देर शाम से ही आंखों में नींद भरने लगती है
नशा होता है इतना गहरा कि
सपनों को भी खुमारी आ जाती है
वह आंखों में उतरते नहीं उस रात
उनकी भी कहीं गहरे आंख लग जाती है
नींद उतर जाती है एक गहरी अंधेरी खाई में और
थक कर एक कोने में आंखें मूंद कर सो जाती है
होती है जब सुबह की उसकी आंखों के कपाट पर
हल्के हल्के दस्तक तो
आज वह थोड़ा और सोना चाहती है
उठना नहीं चाहती
काश यह नशीली रात कुछ और अधिक लंबी हो जाती और
सुबह जो होती तो उसे सोते से न उठाती।