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रिश्तों पर एक धुंध की चादर

रिश्तों पर जो

एक धुंध की चादर चढ़ी है

यह अब कभी न उतरेगी

मौसम को बदलते देखा है लेकिन

इस दुनिया के लोगों को सुधरते नहीं देखा

यह रिश्ता तो बद से बदतर होता जा

रहा है

जिन्दगी खत्म होने पर आई लेकिन

इस आदमी को अभी भी

सुध नहीं आई

यह जीवन की कड़वी सच्चाइयों से

अभी भी है अनभिज्ञ

जब कभी इसे होश आया

तब तक तो बहुत देर हो चुकी होगी

रात की चांदनी

बर्फ की सफेद चादर ओढ़कर

शांत हमेशा के लिए सो चुकी होगी।