in

प्रेम पत्र: डॉ. वर्षा खरे द्वारा रचित कविता

अलमारी में रखी उस लाल साड़ी के नीचे दबे, झांकते हुए कागज़ के लाल टुकड़े पर नज़र पड़ते ही 
इक पल को दिल थम सा गया…सांसे रुक सी गयीं।
सबसे छुपाकर रखे कागज़ के उस लाल टुकड़े ने बरसों पुराने यादों के मंज़र को ज़िंदा कर दिया….जो दिल के किसी कोने में चुपचाप सो रहीं थीं
अश्रु की अविरल धारा बहने लगी
उस कागज़ के शब्दों को जब ओठों से छुआ तो हृदय में भावनाओं का सागर बह चला..वो बीते पल जीवित हो गए
जो हमारे प्रेम के साक्षी थे
उन पलों में जो हमने अपनी ज़िंदगी जी ली थी..वो आज ज़िम्मेदारियों तले कहीं दब सी गयी।
आँखे तुम्हें ढूंढने लगीं…दिल बेचैन सा हो गया तुम्हारी इक झलक के लिए
न जाने कहाँ खो गए तुम?
क्या मैं भी तुम्हे याद हूँ?
कभी किसी मोड़ पर मिलो तो पाओगे मेरी ज़िंदगी आज भी उसी मोड़ पर रुकी है जिस मोड़ पर नियति ने हमें अलग किया था…
देखो मैंने तुम्हारी इस प्रेमपाती को बहुत संभाल कर रखा है
मेरे लिए ये महज़ कागज़ का एक टुकड़ा नहीं है…इसको मै उम्र के इस पड़ाव में अपने साथ सहेजकर ले जाऊँगी….
मेरी ज़िंदगी का न मिटने वाला इक हिस्सा…इक पाती प्रेम भरी