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दर्पण

आसमान

तुम भी तो

एक दर्पण से ही हो

लेकिन तुम मुझे मेरी छवि नहीं

दिखाते हो अपितु

प्रभु की दिखाते हो

अपना नीला आवरण

सफेद बादलों के टुकड़ों से पटा हुआ

दिखाते हो

पक्षियों की उड़ान दिखाते हो

बारिश की बूंदों को बरसाकर

मुझसे भिगोते हो

सुबह का उगता सूरज दिखाते हो

सांझ का ढलता सूरज दिखाते हो

रात का अंधियारा दिखाते हो

चांद दिखाते हो

सितारे दिखाते हो

आकाश में उड़ते हवाई जहाज भी

दिखाते हो

कभी कभी कोई चमकता हुआ

तारा दिखाकर

अंतरिक्ष के रहस्यों को भी

समझाते हो

आसमान तुम एक सीढ़ी लगाकर

मुझे अपने समीप क्यों नहीं बुलाते हो

मैं भी तो फिर देखूं

तुम्हारा शयनकक्ष

उसमें जड़े दर्पण

तुम्हारे सौंदर्य प्रसाधन

तुम्हारे तन की सुंदरता से कहीं अधिक

तुम्हारे मन की सुंदरता

एक टूटे हुए दर्पण सा ही

कहीं से तुम्हारा टूटा हुआ दिल भी

जो एक दर्पण लगी हुई आंख से भी

कोई देख नहीं पाता।

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