in

जीवन का दर्द से है एक गहरा रिश्ता

यह जीवन क्या है

क्या एक जमा हुआ

बर्फ का टुकड़ा

वह भी दर्द से कराहता हुआ

बर्फ पिघल नहीं पा रही

उसे सूरज की एक किरण की भी

तपिश जो मिल नहीं पा रही

दर्द एक नदी बन बह नहीं

पा रहा है

एक बर्फ की शिला सा

पत्थर के एक बड़े टुकड़े सा

अपना मुंह सिकोड़े

एक कोने में बैठा है

जीवन का दर्द से एक गहरा

रिश्ता है

दर्द टुकड़ा टुकड़ा बिखरेगा

तभी

खत्म होगा तभी जब

होगा इस जीवन का अंत

उससे पहले तो शायद दर्द से निजात

नहीं मिल सकती।