जिस राह पर मैं चल रही तो
यह कैसे है सम्भव कि
उस पर बिछे हों सिर्फ फूल ही फूल
न हो साथ उनके कोई कांटा
यह तो प्रकृति के नियम के भी खिलाफ है
फूल और कांटे संग हो तभी
खिलता कभी सुख का तो
कभी दुख का संसार है
फूलों के सुख का अहसास भी तभी
होगा जब
कांटों की चुभन हासिल होगी
कांटा पांव में चुभ भी जाये तो
खुद ही झुककर
अपने पांव से उसे निकाल लेना
किसी की मदद इसमें मत लेना
कांटे राह से हटाते रहना
अपना मार्ग प्रशस्त करते रहना
एक फूल सा ही फिर मुस्कुराते रहना
दुख को भी सुख सा ही अपनाते रहना
फूलों भरी मंजिल की तरफ
सबको गले लगाते हुए
अपने कदम बढ़ाते रहना।