कुछ ख्वाब सुनहरे रखे थे
कच्चे-धागों के पहरे थे,
सहज-सलोने बचपन के पर
गांठ पुराने अपने थे।
कुछ प्यारे-से कुछ गहरे-से
कुछ रंग सितारों वाले थे,
कुछ तुम जैसी चमकीली थीं
उनपर लम्हों के पहरे थे।
प्यारी-प्यारी शर्मीली-सी
कभी परछाईं तुम मेरी-सी,
आंगन की सोन-चिरैया सी
कभी मतवाली चुलबुली-सी।
खिलती खिलती-सी धूप थी
कभी साथ सुनहरी प्रीति-सी,
कभी यादों की जंजीरों में
बहती आंखों से मोती-सी।
माना कि याद पुरानी-सी
बहती नदियों के पानी-सी,
तुम दूर सदा पर यादों में
कच्चे-धागों सी प्यारी-सी।