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सपने: डॉ. सोनिया गुप्ता द्वारा रचित कविता

सारा जहां जब सो रहा होता,

रात की कालिमा में कोई पास न होता,

तो ये स्वप्न बन के आते हैं साथी,

जिनके साथ से अकेलापन सब दूर होता |

ये सपने भी बड़े अजब से नज़र आएं,

कभी तो इक ख़ुशी की उम्मीद जगाएं,

कभी खुद ही भय को बढ़ाते,

किसी के ये बैरी, तो किसी के मीत बन जाएं |

हर कोई इस दुनिया में सपने देखे है हज़ार,

पर क्या कोई समझ सका है यार ?

किधर से आएं किधर को जाएँ,

फिर भी सपनों का साथ न छोड़े संसार |

कहते हैं कि सपने सच भी होते हैं,

सपने देखने से इरादे मजबूत होते हैं,

भविष्य में क्या होगा किसी के,

उसका भी ये हाल खुद में संजोते हैं |

खुली आँखों में भी रहते हैं सपने,

जिनको देख लक्ष्य पूरे होते हैं अपने,

इरादे नेक हों तो अवश्य सच होते हैं सपने,

पराये नहीं, अपने ही होते हैं सपने |