मेरे सिर पर
आसमान टूटकर गिर रहा है
है पैरों में जंजीर
तुम आंखों से ओझल हो
हवाओं का भी मच रहा चारों तरफ शोर
यह काली घटाएं कहां से घिर आयीं
मेरे हिस्से के आसमान में कि
यह अंधेरा छंटे
कुछ उजाला बढ़े
मुझे कोई रास्ता दिखे तो
मैं अपनी नजरों पर पड़े
अपने जुल्फों के जाल को चेहरे पर से हटाकर
कहीं तो आगे बढूं।