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मैं खामोश हूं

मैं खामोश हूं लेकिन

इस ख़ामोशी को मैंने नहीं चुना

यह तो मेरे हालात हैं और

मेरे साथ रह रहे अधिकतर लोग हैं जो

यह चाहते हैं कि

मैं खामोश रहूं

किसी बात में उनकी कोई दखल न दूं

मुंह पर अंगुली रखकर रहूं

एक शब्द भी

जरूरी हो तब भी नहीं बोलूं

मेरे सामने पड़ने पर ही

वह बौखलाहट से भर जाते हैं

न मैं

न मेरी तस्वीर

न मेरा नाम

कुछ भी नहीं भा रहा इन

असभ्य लोगों को

जहां आप की कही बातों या

आपके शब्दों को, वाक्यों को

मान न मिले

वहां खामोशी अख्तियार कर लेना ही

एक बेहतर विकल्प होता है

सिरफिरे लोगों के बीच अपनी बातचीत का पक्ष रखकर

वैसे भी हाथ लगेगा आखिरकार क्या

कुछ नहीं, कुछ भी नहीं।