रोज सुबह तुम खिलते हो
आसमान में उगते सूरज से भी मिलते हो
आकाश को छूने की तुम्हारी तमन्ना
कुछ रंग तो दिखा रही है
सूरज को अपने सिंहासन से
हिलाकर तुम्हारे समीप ला रही है
सूरज की किरणें तुम्हारे अधरों को
चूमने के लिए बेताब सी
लग रही हैं
तुम्हारी कोमल पंखुड़ियां भी
उनका आलिंगन करने को
आतुर सी प्रतीत होती है
यह सुबह की बेला
मिलन की घड़ी है
एक दूसरे के स्वागत में
सब अपनी पलकें बिछाये बैठे हैं
यह समय ठहरा रहे
कहीं न जाये
अभी तो दिन का आरंभ है
अपने घर लौटने की किसी को
कहां कोई जल्दी है।