भगवान का भक्त होते हुए भी इतना अहंकारी


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ऐ मानव

जब भगवान अहंकारी नहीं है तो

तू उनका भक्त होते हुए भी

इतना अहंकारी क्यों है

यह फिर कौन सी भक्ति हुई

जिसमें प्रेम भाव का अभाव है

समर्पण की कमी है

मानवता को समाप्त करता

एक विनाशकारी तांडव है

सुनो मानव

मेरी तुम्हारे से हाथ जोड़कर

विनती है कि

तुम अपने मानसिक विकारों पर

विजय पाओ

आंख मूंदकर भक्ति भाव से

बस प्रभु के दिखाये मार्ग का

अनुसरण भर कर लो

फिर देखना प्रभु की कृपा तुम

पर बरसेगी

तुम एक माध्यम बनोगे इस जगत के कल्याण का

प्रेम की बारिश होगी हर

तरफ जिसमें

अहंकार के भाव की कोई बूंद

न होगी।


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