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बरसे सावन: उमा नटराजन द्वारा रचित कविता

झमाझम मोतियों की सी लड़ी बिखेरे है, सावन
छमाछम बरसाये बूंदे शीतल, मन भावन
घन घन घन बिजुरिया चमके, घनन घन
थम थम जाये उर की तृष्णा दब कर, मन ही मन

सावन की बौछारें पड़े धरा पर झर झर
विटप और तरु पल्लव करे चर चर
हर हर करती दमकती दामिनी, मन जाये डर डर
सर सर चलती पवन पुरवाई, छिप छिप जाये दिनकर

टप टप करती पाउस की बूंदें, झलमल झलमल
फैला फैला जाये, सब ओर कीचड़ और दल दल
धड़ धड़ टपकती वारि, करती सरिता कलकल कलकल
चंचल सावन तड़क तड़क, कर बजाये करतल

उमड़ घुमड़ मेघ करते, मचा कर गर्जन
झिंगुर दादर करते, झन झन झन झन
पीयु पीयु बोले पपीहरा, और चातक गण
टर टर करते मेंढक, जैसे करे बच्चे क्रंदन

मै झूला झूलती गाती कंठ से निकालती, स्वर लहरी सावन
मेंहदी सजती हथेली पर और चूड़ियाँ मन भावन
लहरिया घाघरा पहने थिरकते पग झनन झनन
हर तृण में हरियाली फैल उठती, भर जाती ताजगी कण-कण