दुनिया की इस सर्कस में


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सर्कस में जैसे

एक जोकर

दुनिया की इस सर्कस में

मैं भी एक वैसी ही जोकर

दिल दुखी है

एक दर्पण सा टूटकर

न जाने कितने छोटे व बड़े टुकड़ों में विभाजित

हर एक टुकड़ा चुभता हुआ

एक दर्द का शुल चुभाता हुआ

पीड़ा की सैकड़ों नदियों को दिल से,

कभी आंख से तो

कभी पसीने की धार से बहाता हुआ

खुद को रंग कर

रंग बिरंगी पोशाक में सजकर

हौले हौले कदमों से

भरे हुए मन से

आंखों में छिपाये आंसुओं के सैलाब 

होठों पर एक बनावटी मुस्कुराहट लिए 

एक जोकर अपना किरदार बखूबी निभाता है

अपने पेट की भूख शांत करने के लिए 

हर वर्ग के दर्शकों को बहुत हंसाता है

हर किसी को

यह रंग बिरंगा जोकर ही तो है

जो सबको बहुत लुभाता है

सबके मन को छूता है

सबके दिल में अपनी मनमोहक छवि बसाता है

सबको अपनी हरकतों से गुदगुदाता है 

कभी किसी ने अकेले में फिर

जेहमत उठाई कि

उसके दुख तकलीफों को सुन भर

लेने के लिए

चलो आज उसके दिल को भी जरा ज्यादा नहीं तो

थोड़ा सा टटोले।


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