कहने को
दिखते हैं रंग अनेक मुझे लेकिन
मिलते कहां हैं
दिल में भरा है जैसे प्यार अपार
महसूस होता है वह हर पल
बेशुमार लेकिन
मिलता कहां है
जो कुछ भी दिखता है
वह बस कुछ पल को ठहरता है
फिर हो जाता है
आंखों से ओझल और
फिर कभी न मिलता है
इस संसार में सब कुछ अस्थाई है
क्या
मैं भी तो हूं इसी श्रेणी में
आज हूं
शायद कल नहीं रहूंगी लेकिन
मैं जो न दिखूंगी तो
किसी को होगी कभी मुझसे मिलने की तड़प।