चेहरा गुलाब सा: सरिता त्रिपाठी द्वारा रचित कविता


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उड़ रहे थे केश गजरा महक रहा था
चेहरा गुलाब सा रंगत खिला रहा था
कमल से नयन तेरे कुछ कह रहे थे
दीदार तेरा, मेरा धड़कन बढ़ा रहा था
आ जाए पास तू दिल को चयन मिले
बाहों में बाहें डाल हम तुम गले मिले
अल्फाज़ सारे मैं तुझको सुना रहा था
तू मुझमें और मैं तुझमे समा रहा था
पायल की छमछम कानों को छू रही
चूडी की खनखन मुझको बुला रही
श्रृंगार तेरे तन का मन को लुभा रहा था
तेरी बसंती चूनर में, मैं, तो सिमट रहा था
माथे की बिंदिया कुछ यूँ चमक रही
मिलने को मुझसे थी जैसे तरस रही
लब थे सिले पर दिल पुकार रहा था
नयनों से तू मेरे दिल मे उतर रहा था

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