गुजारिश


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गुजारिश तो मैंने

हद से ज्यादा करी कि

मुझे छोड़कर मत जाओ

मुझ पर तरस खाओ

ऐसे तो मत तड़पाओ

थोड़ा और रुक जाओ पर

जिसका वक्त पूरा हुआ

उसे कभी किसी के रोकते रुकाते

देखा है

जमीन वही है

पौधा वही है

पेड़ वही है

पतझड़ आता है

सब कुछ अपने साथ

बहाकर ले जाता है

बहारों का मौसम आता है

अपने साथ फूल,

पत्ते, उनके रंग,

सुगंध, मन में उमंग

और न जाने कितने

उपहार लाता है लेकिन

यह नया फूल पुराने फूल की

जगह बेशक ले ले पर

वह पुराना फूल तो नहीं है

कई बार तो जमीन

वही है पर

पौधा नया

पेड़ नया

उस पर फूल भी नया

और शायद अलग भी

कैसे समझाये कोई मन को

कि जाने वाले का गम

दिल से निकलता नहीं

खुदा से जो करूं यह

गुजारिश कि

मुझे कोई याद न आये

मेरे दिल में प्यार की

जन्नत न बसाया करे

उनमें फूलों के उपवन न

खिलाया करे तो क्या

वह इसे कुबूल फरमायेगा।


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