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ख़याल: अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता

कैसे समझाऊँ पिया हरदम हारी
प्रीत-रीति कई कल्प निहारी,
उलझन बार-बार घिर आए
छवि गुन-गुन सुध नित्य बिसारी।
प्रीत हलाहल अगन उर बरसे
जिऊं दिन-दिन गिन पिया मैं प्यारी ,
सम्मोहित संग-आभा चहूँ बिखरे
प्राण-प्रिये अब भई भिनसारी।
दूर कहीं तुम, लागे सब छलना
तुम बिन अब दिल के प्रतिहारी,
यादों के पुलकित गलियारे सूने
बैरन बन टीसे बेकरारी।
क्यों यादों के साए साए
अबुझ पहेली प्रीत बेचारी,
गाहे-गाहे क्यों ललचाए
सुध-बुध सब नैनन बीच वारी।
टीस हृदय के लोहित रंजित
कब बनी गले की हार अनुरंजित,
बस ख़यालों का अब मसला है
पिया अब सब बस यादों में संचित।