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कहीं यह कातिलाना मौसम मुझे

मौसम भी कातिलाना हो रहा है

मेरी अदाओं की तरह

अपनी कमर में बंधी म्यान से तलवार निकाल कर

कहीं यह मुझे घायल न कर दे

प्रेम में पागल न कर दे

अपने साजन की मुझे सजनी न कर दे 

प्रीत के बंधन में जकड़ कर

एक फूल से चिपक कर बैठी तितली न कर दे

एक पंख सिकोड़कर आसमान से उतरकर

जमीन पर बसर करता

दाना चुगता

फुदकता

अपने पैरों में घुंघरू बांधकर 

इधर-उधर आवारा फिरता

पंख होते हुए भी जो न उड़ना चाहे 

ऐसा परिंदा न कर दे।