अजनबी


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अजनबी तो

इस दुनिया में

सब हैं

वह कौन है जो

खुद को भी कहीं जानता हो

एक माटी का चोला हैं सब

जिसमें समाई है

सांस लेती रूह कोई

इतनी ही पहचान है सबकी

मिट्टी की मूरत है

मिट्टी में मिल जायेगी

कहां से आया है

कहां तुझे जाना है

ऐ मुसाफिर

बस इतना ही जान ले कि

यह दुनिया एक सराय है

एक अजनबियों की बस्ती कोई

एक अनबूझ पहेली

तुझे यहां कुछ पल ठहरना है

फिर बस कहीं उठ कर चले जाना है

खुद से भी तू अजनबी ही बना रह

कोई सवाल मत पूछ इससे या

उससे या खुद से

जवाब कोई सही या सटीक नहीं

मिल पायेगा

कुछ भी जानने की कोशिश

मत कर

एक अजनबी राह पे

एक अजनबी मुसाफिर सा बनकर

चला चल

मंजिल से आगे बढ़कर

रोशनी के एक अंबार को पा ले

यही शायद तेरा वह जिंदगी का

आखिरी पड़ाव होगा जहां

तेरे हर सवाल का जवाब होगा और

तू या कोई भी यहां तेरे लिए

कोई अजनबी नहीं होगा।


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