Uphaar: A poem by Veena Sharma


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घर से आई है अभी एक सूचना
उपहार लाया है कोई मेरे लिए
कैसी होगी शक्ल उसकी और होगा रूप क्या
क्या भरा होगा समन्दर कोई उसकी आंखों मे।
वर्षों से देखा नहीं मैंने किसी उपहार को
यूं तो बचपन में मिले थे सैंकडो़ं तोहफे मुझे।
उम्र के इस मोड़ पर हलचल सी एक होने लगी
पकडा़ गया उपहार आकर आज मेरे नाम कौन।
शून्य सी इस जिंदगी में जैसे कुछ हासिल हुआ
क्या सिखाना चाहता है प्रेम कोई अब मुझे
है नहीं उम्मीद कोई जब मुझे संसार से।
क्या किसी की भूल का संताप है उपहार में
या हंसाने की है कोशिश सिर्फ,और कुछ भी नहीं।
या कोई जंजीर टूटेगी ,कमल खिल जायेगा
या कि इस तोहफे से कोई दास्तां कह जायेगा।
घर पहुंचकर जब नजर तोहफे पे मेरी जा टिकी
देखकर मारे खुशी के मन मेरा गदगद हुआ
मिल गयी हो जैसे मुक्ति एक बड़े संताप से।
स्पर्श मैंने कांपते हाथों से ज्यों उसको किया
हो गया विह्वल मेरा मन भाव के अतिरेक से।



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