Ummeed: A poem by Anjali Sharma


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जब तूफानोंमें कश्तीकोई कहींडगमगाती है
उठती लहरोंसे बचनेकी तरकीबनज़र नहींआती है
तब छोरपे जलतीलौ, व्याकुलनाविक काधैर्य बंधातीहै
और एकछोटी सीउम्मीद, उसेकिनारे तकपहुंचाती है।

जब बर्फीलीसर्द हवाएँहड्डियों कोपिघलाती हैं
जब आगेबढ़ने कीकोई, राहनज़र नहींआती है
तब हिमशिरा कोछूने कीमुहिम, अपनीज़िद परअड़ जातीहै
आशा कीहठी किरण, उसे परबतशिखर पहुंचातीहै।

जब मशालेंपराक्रम शौर्यकी, आँधियोंमें बुझनेलगती हैं
शत्रु कीअसंख्य सेनाएँ, शूर वीरोंका मनोबलहरती हैं
तब देशप्रेम कीज्वाला सीनेमें धधकऊर्जा जगातीहै
ज़िद्दी हठीएक आशा, विजय ध्वजशिखर परफहराती है

जब जलतेशुष्क मरुस्थलमें, मुसाफिरराह भटकतेहैं
तपते सूरजसे विह्वल, नर पंछीविकल होउठते हैं
तब मृगमरीचिका बनआशा, उनकोलक्ष्य दिखाए
प्यासे तनमन कोशीतल जलकी आशाआस बँधाये।

जब अंग्रेज़ोंने भारतमें अत्याचारमचाया
उनकी ताकतके आगे, कोई भीठहर पाया
एक जीर्णशीर्ण साप्राणी, निहत्थामैदान मेंआया
उम्मीद स्वतंत्रभारत की, उस स्वप्नको सफलबनाया।

चाहे सूरजकी लालीकितनी होजाए मद्धम
चाहे सावनमें बादल, हो निराशहताश जाएँथम
तुम चलतेजाना राही, तुमसे हरदिशा मेंउजियारा
तुम उज्जवलकल कीउम्मीद, तुमहारे जगका सहारा।




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