Umang: A poem by Radha Shailendra


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तुम्हारे सपनो के सोपानों पर चढ़कर
मैं जितना भी ऊपर जाती हूँ,
न जाने कितने हाथ खींचकर
मुझे धरती पर ले आते है,पर मैं अडिग खड़ी हूं
उस उमंग के साथ जो तुमने भरी है मेरे वजूद में!
कभी तो तुम्हारा विश्वासरूपी बीज विशाल पेड़ बनेगा!
और फिर, किसी के भी मजबूत हाथ
इसकी जड़ें नही हिला पाएंगे
हमारे सपने अपनी शाखाएं फैलाकर विकसित होंगे
तुम्हारा वही मंत्र,मेरी “उन्नति”,मेरी पहचान वाला
हाँ मुझे गुलाब की तरह विकसित करेगा;
जिस तरह अंधेरे को चीरती हुई
आ रही है एक बेहद खुशगवार सुबह की
किरणे और भरपूर उलीच रही है मेरे दामन में
यकीन है उगने वाले दिन खूबसूरत होंगे
यही तो है तुम्हारे उन्नति के मंत्र
जो दिये है तुमने मुझे
“उमंग “बनकर हर मुश्किल आसान कर देते हो
जिंदगी मेरी आसान कर देते हो
इसलिये मैंने तुम्हारा नाम ही रख दिया है “उमंग






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