कर्तव्य पथ पर अडिग चलूं,पुष्पित चाहे ना राह मिले;
खुद अपना त्रिशिख संभालूं,चुनौतियां गर अथाह मिले।।
राग द्वेष से उठ ऊपर,
भाव सदा पुनीत हों;
निज स्वार्थ से परे,
निश्छल प्रेम प्रणीत हो।।
ना जात पात के पक्षपात हो,ना मानस पटल अधीर हो;
प्रत्युष हर तम को हारेगा,बस इतना सा धीर हो।।
दुस्साहसों से ना भीत हो,
सशक्त मेरी प्राचीर हो;
हस्त सदा उसको संभाले,
जिसको ज़रा भी पीर हो।।
गिरकर तत्क्षण संभल जाऊं,बढ़ चलूं मंज़िल के समीप;
रक्षित नहीं, रक्षक बनूं,बनूं देहरी का दीप।।
आत्मसंदेह की विह्वलता,
हो जाए अवसान;
बस यही है प्रार्थना,
हे परम शक्ति महान!!