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Shashakt meri praachir ho: A poem by Ankurita Khajanchi


कर्तव्य पथ पर अडिग चलूं,पुष्पित चाहे ना राह मिले;
खुद अपना त्रिशिख संभालूं,चुनौतियां गर अथाह मिले।।
 
राग द्वेष से उठ ऊपर,
भाव सदा पुनीत हों;
निज स्वार्थ से परे,
निश्छल प्रेम प्रणीत हो।।

ना जात पात के पक्षपात हो,ना मानस पटल अधीर हो;
प्रत्युष हर तम को हारेगा,बस इतना सा धीर हो।।

दुस्साहसों से ना भीत हो,
सशक्त मेरी प्राचीर हो;
हस्त सदा उसको संभाले,
जिसको ज़रा भी पीर हो।।

गिरकर तत्क्षण संभल जाऊं,बढ़ चलूं मंज़िल के समीप;
रक्षित नहीं, रक्षक बनूं,बनूं देहरी का दीप।।

आत्मसंदेह की विह्वलता,
हो जाए अवसान;
बस यही है प्रार्थना,
हे परम शक्ति महान!!