Mausam: A poem by Veena Sharma


0

#ALSHindi #17
मौसम—-
जब से मौसम ने करवट बदली है
तुम भी बदल से गये हो
वर्षा ऋतु के काले विद्युत युक्त गड़गडाहट से भरे
बादलों के अदृश्य होतेहोते
तुम भी अदृश्य से हो गये हो।
जब कि सर्द ऋतु की विदाई एवं
 ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर आम के उद्यानों में
 करते ही  वृक्षों पर लगी बौर की भीनी महक से
प्रफुल्लित हो जाता है मन।और
खेतों में खड़ी गेहूं की सोने जैसी बालियों के
बींच से हल्की उष्णता लिए सररसराती पवन
 मानव मन को उद्वेलित करने लगी है।
दूरदूर तक फैले सुनहरे खेतों को देख
किसान आश्वस्त होने लगे हैं।और आपदा
से नष्ट हुई पिछली फसल के दर्द को
भूलने लगे हैं। और तुम अपने बड़ेबड़े
नेत्रों के कोटरों में से अतुलित जलराशि को
बाहर ही नहीं आने देते हो।
देखो उस सुदूर पर्वत के शिखर ने
अपनी ग्लानि के फलस्वरूप एक तपस्वी की तरह
अपने ऊपर जमी बर्फ को पिघला दिया है।
और उसके वेग को अपने नेपथ्य में स्थित
 सूखे खेतों की तरफ मोड़ दिया है।
क्या तुम अपने नेत्रों में संचित जल से
एक हृदय को नहीं सींच सकते हो,



Like it? Share with your friends!

0

0 Comments

Choose A Format
Story
Formatted Text with Embeds and Visuals