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Maa Kehti hai kabhi yahan kashtiyan taira karti thi: A Hindi poem by Priti Patwardhan

माँ कहती है कभी यहाँ कश्ती तैरा करती थी
 माँ बचपन में यह कहानी सुनाया करती थी

जब याद आती है माँ को  उस गाँव की वादियाँ
याद आती है गालियाँ जहाँ बस्तीयाँ बसा करती थी

उमड़ती धुमड़ती भावनाएं तरंगे लिया करती थी
भीनी भीनी सी बातें मन को लुभाया करती थी

माँ कहती है गाँव में पहाड़ियाँ हुआ करती थी
ऊँचे ऊँचे पेड और हरियाली हुआ करती थी

गाँवो को  छू कर वहाँ घने जंगल बसा करते थे
घण्टों बतियाते हम जंगल रोज़ जाया करते थे

इन जंगलो से हो कर एक नदी बहा करती थी
दिखाई थी माँ ने वो जगह जहाँ कश्ती तैरा करती थी

माँ बताती है कैसे जीते थे खुले आसमां के तले
चिलचिलाती धूप और हमें बरगद की छांव मिले

दौड़कर दिनभर हम तितलियाँ पकड़ा करते थे
कश्तियों में बैठकर कहीं दूर भी जाया करते थे

देख रहे हो न ये छोटे छोटे ताल ,जलाशय रह गए  हैं
कलकल बहती थीं यहाँ नदी अब पोखर रह गए है

एक छोटी बच्ची आश्चर्य से  देख समझ रही थीं
क्या ये वही जगह है यहाँ कश्ती तैरा करती थीं?