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मुस्कान: डॉ. वर्षा खरे द्वारा रचित कविता


न बनने दो आधार किसी को
तुम अपनी मुस्कान का
छुपा लो सारे अपने ग़म तुम
इक प्यारी सी मुस्कान से
दर्द बहुत हैं इस जीवन में
जो दूर न होंगे रोने से
विश्वास गर हो तो 
होंठों पर रखो हमेशा 
आशा भरी मीठी मुस्कान
मोल नहीं है कुछ भी इसका
पर है दुनिया में सबसे अनमोल
गहनों से जो न निखरे सुंदरता चेहरे की
ओढ़ लो चुनरिया छोटी सी मुस्कान की
थोड़ा तुम हँस लो और 
थोड़ा दुनिया को हँसा लो
जीवन की रीति यही अपनालो
न खुद रूठो न औरों को रूठने दो
खूब हँसो कभी खिलखिलाकर 
कभी थोड़ी मुस्कान बिखेर दो
दुखों की स्याह काली रात में 
चांदनी फैला दो प्यारी सी मुस्कान से