मुझे गुलाब के फूलों से खिला जो
कोई चमन न मिला तो
मैं किसी एक गुलाब के फूल से ही
काम चला लूंगी
एक गुलाब का फूल भी जो मुझे कभी किसी ने
हाथ में न पकड़ाया तो
गुलाब की पंखुड़ियों से
दिल बहला लूंगी
गुलाब की पंखुड़ियां भी जो न
बरसाई किसी ने मेरे तन पर
मेरे स्वागत में कभी तो
उनकी खुशबुओं को सांसों में
भर लूंगी
उनकी खुशबू भी जो न
उड़कर आई हवाओं के साथ तो
उनके कांटों को
जो पड़े मिल गये मेरी राहों में कहीं
उन्हें ही प्रेमपूर्वक उठा लूंगी
अपने मन के कक्ष में
एक गुलाब के फूलों के
महकते उपवन सा ही सजा
लूंगी।