जीवन में बहुत कुछ घटित होता है
वीभत्स
विघटनकारी
अप्रत्याशित
नकारात्मक प्रभाव दिलो दिमाग पर डालता
जो मन को लगता अप्रिय लेकिन
फिर वापिस अपने दिल की गली तक
लौट आने के सिवाय नहीं होता है
कोई अन्य विकल्प
सुकूं मिलता है इंसां को अपनी ही
पनाहों में
लोगों की क्या है
ज्यादातर लोग तो किसी की
मजबूत जड़ें भी हिला हिला कर
उखाड़ने की कोशिश ही करते रहते हैं
जो आदमी कहीं गर पहले से
कमजोर हो तो
उसका क्या हश्र करेंगे
मनुष्य की प्रकृति ही है
दूसरे मनुष्य को प्रताड़ित करना
आज के युग में
किसी से क्या उम्मीद बांधनी
जो सुख खुद के सानिध्य में है
वह सुख दुनिया के किसी कोने में
नहीं।