फूलों की बहार को
बाग से चुराकर
यह सड़क किनारे बिछाकर
क्या सजा दिया है
अनमोल हैं यह
तुम इनको भी बेचते हो
बाजार में
इनकी कीमत भी तय करते हो
इनको जरिया बनाकर
पैसा भी कमाते हो
गुलिस्तान की प्राकृतिक
छटा को कम करते हो
इन फूलों को बिना बात
तोड़ते हो और
इनका इस्तेमाल करके
अपने घरों की,
इमारतों की, कमरों आदि की
शोभा बढ़ाते हो
प्रकृति के सौंदर्य से खिलवाड़
करते हो
इस दुनिया के लोग
बड़े जालिम हैं
इन नाजुक फूलों को नहीं
छोड़ते तो यह किसी और
को भी कहां बख्शेंगे।