मेरे चेहरे का रंग
पीला पड़ गया है
यह एक सूखे पत्ते सा मुरझा गया है
इसका रंग फीका पड़ गया है
दर्द के कारण
दर्द का एक शूल चुभाता दरिया
मेरी रग रग में बह रहा है
इस दर्द की कोई सीमा नहीं है
जो इस दर्द से नहीं गुजरा होगा
कभी
वह शायद ही समझ पाये
मेरी असहनीय पीड़ा को
कोई मेरी मदद करे या न करे
लेकिन मैं खुद की सहायता
कैसे करूं
बहुत कोशिश करती हूं कि
अपने दुख तकलीफों और
जीवन की समस्याओं से अपना
ध्यान हटाऊं और
किसी अन्य सार्थक कार्यों में अपनी
ऊर्जा लगाऊं लेकिन
कभी कभी खुद को हारा हुआ
महसूस करती हूं जब यह
दर्द बेइंतहा होता है और
मेरे अंग अंग को जकड़ लेता है व
मेरी आत्मा को कचोटता है
यह दर्द लाख कोशिश
करने के बावजूद जड़ से खत्म
नहीं होता
हां कभी कम तो कभी ज्यादा
और कभी कभी तो बहुत ही
ज्यादा होता है
यह जब कम होता है तो
मैं थोड़ा खुश हो लेती हूं
जब एक अति पार करता है तो
बच्चों की तरह ही थोड़ा सा
रो भी लेती हूं
मैं एक सामान्य व्यवहार
करती हूं इसको लेकर
यह मेरे जीवन का एक
हिस्सा बन चुका है
यह मुझे स्वीकारना ही होगा
इसे नियंत्रित करने
के प्रयास तो उम्र भर
निरंतर जारी रखने ही होंगे
कोई प्रेरित करे या न करे
मुझे खुद को प्रेरित करते
रहना है
भगवान का प्रसाद समझकर
इस दर्द को भी
श्रद्धा भाव से स्वीकार करना
ही है।