एक कप चाय
सच में देखा जाये तो
है तो एक जादू की प्याली जो
खुद में समेटे रहती है
जाने कितनी ही अनगिनत
मन की दहलीज पर
कभी चढ़ते तो
कभी उतरते अहसासों की
असीमित श्रृंखलाओं को
एक भीगे हुए बिस्कुट सा ही
डूब कर रह जाता है
चाय की प्याली में भरे हुए
जज्बातों के समुन्दर में
किसी का छोटा सा मन
लाख कोशिश करे पर बाहर
कहां निकल पाता है
यह प्यार की आंधियों में फंसा
हुआ मन
एक जाल में फंसी हुई
सोन मछली सा ही है यह
तन
यह फंसना ही तो चाहता है
प्यार के बंधन में
इससे छूट कर बाहर कहां
निकलना चाहता है
प्यार के नशे और
एक कप चाय की तलब में
भला फिर कोई फर्क है क्या।