झील सूखी नहीं
जल से लबालब भरी है
फिर भी हैरान हूं मैं कि
यह स्थिर है
शांत है
मौन धारण करे एक संत महात्मा सी मालूम पड़ रही है
ऐसा प्रतीत होता है कि
जैसे इसके साथ
इसके घर में भी कोई नहीं रहता
इसकी वजह से न सही
उनके कारण ही इसमें थोड़ी सी
हलचल हो जाती
कोई इसके साथ रहता भी होगा तो
वह सब भी लगता है समय के साथ
सीख गये इसकी भाषा या
न चाहते हुए भी होगी उनकी कोई मजबूरी
जो समझौते करने के लिए बाध्य होंगे
जीवन भी न जाने कैसी एक अनसुलझी पहेली है
जो समय के एक नाजुक मोड़ पर अच्छे अच्छों की बोलती बंद कर
उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर
देती है एक मूक झील सी ही।