प्रताड़ना की भी
कोई हद मुकर्रर होनी चाहिए
एक इंसान का जन्म लिया है तो
उसमें इंसानियत, शराफत और
वफादारी होनी चाहिए
यह लोग खुद में पशुओं की
हिंसक प्रवृत्ति कहां से ले आते हैं
रहते तो शहरों में हैं
बड़े मकानों में हैं
खुद को सभ्य कहते हैं
फिर घर के बंद कमरों को
एक जंगल सा भयावह क्यों
बनाते हैं
मार खाती हूं
पिटती हूं
कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता कि
घर की चारदीवारी में
अत्याचार की मार न
सहती हूं लेकिन
मैं आखिर जाऊं तो जाऊं कहां
घर से बाहर की दुनिया ही
कौन सी
शरीफों की बस्ती है
आंखों के आंसू जो सूखते हैं तो
घर के एक कोने में बैठी बैठी
अक्सर इस कड़वी सच्चाई के बारे में सोचती हूं।