एक किताब जो बंद थी सदियों से


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एक कली खिल रही है

खिलकर फूल बन रही है

सूरज की धूप जो पड़ी उसके चेहरे पर तो थोड़ी-थोड़ी मुरझा रही है

पेड़ की टहनी से टूटकर

उसके जीवन का एक क्षण

ऐसा भी आया कि

उससे जुदा हुई है

एक किताब जो बंद थी

सदियों से और

शायद चोरी छिपे कहीं उसे दूर से

निहार कर

उसकी ही कहानी लिखती थी

आज उसके स्वागत में

उसे अपनी बाजुओं के मजबूत पाश में बांधने के लिए

उसे अपने दिल के मकान में हमेशा के लिए स्थान देने के लिए

जीवन और मृत्यु के रहस्यों से

अनजान

पन्ना पन्ना

जर्रा जर्रा

करवट बदलती

सिलवटें हटाती

फूल की खुशबू ही कहीं

अपने दामन में सोखती

सदियों के एक लंबे इंतजार के पश्चात एक गुलाब के फूल सी रंगत लिए

खुली है।


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