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वह भटकी हुई परी

कई बार ऐसा महसूस होता है

जैसे कि मैं ही कोई परी हूं जो

परी लोक से भटक कर इस संसार में प्रवेश पा गई है

इस परी का दिल एक फूल के समान कोमल है

उसका हृदय एक जलती हुई मोम की तरह ही

हर समय पिघलता रहता है

वह बर्फ की शिला सी शांत,

स्थिर और गंभीर है

यहां के रीति रिवाज उसकी समझ से

परे हैं

कोई सपनों का राजकुमार भी

कभी उसे नहीं मिला उसका

एक भी सपना साकार करने के लिए उसके सारे सपने जो पूरे होते थे

परी लोक में

अब इस लोक में

एक कोने में सिसकते हुए

अधूरे से पड़े हैं

इस लोक में वह भटकी हुई परी

जो सौम्यता, शुद्धता और

सुंदरता खोजती फिरती है

वह उसे कहीं प्राप्त नहीं हो पा रही

वह इस संसार से मुक्ति भी नहीं

पा रही और

यहां की जीवन शैली को अपना भी

नहीं पा रही

उसकी सांसे भर चल रही हैं पर

देखा जाये तो वह जी नहीं पा रही

परी लोक से ही किसी दिन शायद

उसे ढूंढता हुआ

कोई रथ उतरे उसे वापिस ले

जाने के लिए अपने साथ  

इस पल के इंतजार में

सदियों से पलकें बिछाये बैठी है

वह तो।