तू है किसी घर की आधारशिला
तू है किसी परिवार की धुरी
तू है सृष्टि
तू है एक प्रभु के हाथों निर्मित
कोई सुंदर कृति
तू है प्रेम की एक पावन धारा
तू है इस संसार रूपी बगिया की
एक महकती कली
तू है आसमान सी विशाल
तू है जमीन की माटी सी टिकाऊ व उपजाऊ
तू है तो सवेरा होता
सांसों का दरिया तेरी अंगुली
पकड़ कर अपनी डगर पर
आगे बढ़ता
तू है तो सांझ ढलती
तू है तो रात में
चांद निकलता
तू है तो यह जग हंसता
तू है तो हर किसी का
सिर ऊंचा उठता
सीना चौड़ा होता
कदम जीवन के पथ पर
आगे बढ़ता
तू सबको करती खुद में
समाहित
हे स्त्री! तू इस धरा पर जन्मी
बला की हसीन, सर्वगुण संपन्न व महान है
तुझे हृदयतल की गहराइयों से
कोटि कोटि प्रणाम है।