रेगिस्तान की वीरानगी
उस पर मौसम की यह सादगी
रेगिस्तान के टीलों की न रेत उड़ रही है
आसमान के रंगों की न कोई तस्वीर बिगड़ रही है
हर तरफ खामोशी पसरी है
हर दिल अपना कोई अफसाना गुनगुनाना चाहता है
कोई साथी नहीं मिल रहा तो
ऊंट के कान में ही
अपने दिल की कहानी सुनाना
चाहता है
महफिल सी सज जाती है
आसमान के शामियाने तले
एक वीराने में भी,
एक दूसरे में जज्ब होकर
एक दूसरे को जो कोई पाना चाहता है।