मैं प्रेम में डूबी
अपने कान्हा की राधा
मेरा प्रेम पवित्र, पावन व पूर्ण
नहीं कहीं से वह आधा
प्रेम मुझे शक्तिशाली बनाये
प्रेम मुझे भक्ति में रमाये
प्रेम मुझे अपने सखा की
एक सुंदर सखी बनाये
प्रेम मुझे अपने कृष्ण की आराधना करती मीरा बनाये
प्रेम मुझे एक आत्मिक संतोष से भरे
प्रेम मेरे चित्त को स्थिर रखे
न इधर उधर भटकाये
न लेकर कहीं दूर उड़े
करीब होकर एकरस
दूर होने पर एक सुर में पिरोया
विरह का कोई प्रेम गीत सुनाये।