दिल का दरिया
बहता चला गया
किसी अनजान दिशा की ओर
इसे न मिला कभी
पल भर ठहरने के लिए
अपना ही किनारा कोई
इसे नहीं पता कि
यह बह क्यों रहा है
क्या है इसकी कहानी
वह पूरी है या अधूरी
कहां से हुई थी आरंभ
किस मोड़ पर
होगा इसका अंत
सुखद या दुखद
मंजिल को पाता हुआ या
पीछे कहीं छोड़ता हुआ
जमीन से भी कभी इसकी कोई धार उठ जायेगी
और चली जायेगी आखिर में
किसी अंतिम छोर के बिंदु पर
आसमान की ओर।