सांझ हो चली है
सूरज जो दिन भर बना रहा मेहमान
आहिस्ता आहिस्ता
आसमान से विदाई ले रहा है
यह रोशनी धुंधलाते हुए
पूरी तौर पर
अंधेरे में तब्दील हो जाये
उससे पहले सोचा कि
कोई राह चलते मिले या न मिले
सूरज को जो सुबह से शाम तक
समय बिताने के लिए
एक अदद दोस्त मिला वैसा
कोई हमदर्द दिखे या न दिखे
खुद से ही चलो एक गुजारिश कर लूं
रोशनी से कहूं कि तू जा तो रही है पर
जाते जाते कहीं मुझमें समा जा
मेरे मन के हर कोने में फैले अंधकार में
कहीं कुछ तो उजाला भर दे
मैं रात की तन्हाई में तन्हा महसूस न करूं
ऐसा कोई जीने का हुनर
जिंदादिली का हौसला
सकारात्मक सोच मुझमें भर दे
मेरी हमसफर बन जा और
मेरी मुझसे ही रोशनियों के सफर में
मुलाकात कराने की पुरजोर व्यवस्था
कर दे।