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सर्दियों की सुबह

सुबह

कमरे की खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि 

चारों तरफ धुंध की चादर

फैली थी

सर्दियों की सुबह थी

दिसंबर महीने की तो

ठंड तो थी

आहिस्ता आहिस्ता कोहरे की

चादर सिमटी और

हौले हौले कदमों से धूप

उससे बाहर निकली

सर्द सांसों को कुछ गर्मी मिली

कुछ राहत मिली

कुछ उम्मीद की किरण

मन में जगी

मन एक चिड़िया सा

चहकेगा

धूप में बाहर निकलकर

जल्द ही

दोपहर की धूप में बैठ

दिल का साज

गुनगुनायेगा

एक गीत

नव वर्ष के स्वागत में

और मनायेगा

एक पंछी सा ही चहकता हुआ

बड़े दिन का उत्सव भी।